श्री रामाष्टकं

भॆजे विशेषसुंदरं समस्त पापखंडनम्
स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव राममद्वयम्

जटाकलापशो भितं समस्तपापनाशकम्
स्वणक्तभीतिबंजनं भजेह राममद्वयम

निजस्वरूपबोधकम् कृपाकरं भवापहम्
समं शिवं निरंजनं भजेह राममद्वयम्

सप्रपंचकल्पितं ह्यनाम रूपवास्तवम्
निराकृतिं निरामयं भजेह राममद्वयम्

निष्ट्रपंचनिर्विकल्पनिर्मलं निरामयं
चिदेकरूपसंततं बजेह राममद्वयम्

भवब्दि प्तोरूपकं ह्य शेषदेहकल्पितम्
गुणकरं कृपाकरं भजेहराममद्वयम्

महासुवाक्य बोधकैर्विराजमानवाक्पदैः
परब्रह्म व्यापकं भजेह राममद्वयम्

शिवप्रदं सुखप्रदंभवच्छिदं भ्रमापहम्
विराजमानदैशिकं भजेह राममद्वयम्

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