लिंगाष्टकं

ब्रह्ममुरारि सुरार्चित लिंगम्
निर्मल भाषित शोभित लिंगम्
जन्मज दुःख विनाशक लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम्

देवमुनि प्रवरार्चित लिंगम्
कामदहन करुणाकर लिंगम्
रावण दर्प विनाशन लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम्

सर्वसुगंध सुलेपित लिंगम्
वुद्धिविवर्धन कारण लिंगम्
सिद्ध सुरासुर वंदित लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम्

कनक महामणि भूषित लिंगम्
फणिपतिवेष्टित शोभित लिंगम्
दक्ष सुयज्ञ विनाशन लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम्

कुंकुम चंदन लेपित लिंगम्
पंकजहार सुशोभित लिंगम्
संचित पाप विनाशन लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम्

देवगणार्चित सेवित लिंगम्
भावैर्भक्तिभिरेवच लिंगम्
दिनकर कोटि प्रभाकर लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम्

अष्टदलोपरि वेष्टित लिंगम्
सर्व समुद्बव कारण लिंगम्
अष्ट दरिद्र विनाशन लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम्

सुरगुरु सुरवर पूजित लिंगम्
सुरवन पुष्ट सदार्चित लिंगम्
परमपदं परमात्मक लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम्

लंगाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सहमोदते

इति श्र्‍ई गाष्टक स्तोत्रं

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